कोरोना काल में चीन के साथ तनाव: ऑडियंस कॉस्ट के नजरिए से

राजनीतिक विज्ञान किसी देश की सरकार को समझने का क्षेत्र और अंतर्राष्ट्रीय संबंध बहुत से देशों की सरकारों को विश्लेषणात्मक कौशल के साथ समझने का क्षेत्र है। 

आपके आस पास, आपके शहर में, राज्य में और यहां तक कि आपके देश में जो चल रहा है वो इस कोरोना काल में लगभग हर देश के हर शहर में ही चल रहा है। 


दुनिया के बड़े देश कोरोना के चलते हुए जान-माल के नुकसान के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और चीन को दोषी बताने वाले देशों की संख्या धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में चीन-भारत की सीमा पर तनाव सामान्य घटना नहीं है।  


कोरोना काल मे चीन के साथ तनाव: ऑडियंस कोस्ट के नज़रिए से 


जो सीमा पर होगा या हो रहा है वो हमारी सेना संभाल लेगी। सीमा सुरक्षा के मामलों मे सेना को राय देना या ज़बरदस्ती के जवाब सेना से माँगना बेवकूफी होगी, जो कि लगभग हर तीसरा आदमी इस देश मे कर रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। यह काम रक्षा विशेषज्ञों पर छोड़ देना चाहिए। लेकिन आम जनता के सामने कुछ नयी जानकारियाँ कुछ नए एंगल रख के सोचने का नज़रिया जरूर देने की कोशिश की जा सकती हैं। 


कोरोना वायरस के अटैक से पहले से ही चीन 1990 के बाद से ही सबसे बड़ी बेरोज़गारी का सामना कर रहा है। अमेरिका-चीन ट्रेड वार के चलते पहले से ही चीन के लगभग 20 करोड़ वर्करों का भविष्य अधर में लटका ही हुआ था और अब कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया में लगे लॉक डाउन ने वैश्विक मांग लगभग खत्म ही कर दी है, जिसका प्रभाव हर देश का व्यापारी वर्ग झेल रहा है। लेकिन यहां भी चीन को सबसे ज्यादा इस प्रभाव को झेलना पड़ेगा क्योंकि उसकी स्थिति दुनिया भर की फ़ैक्टरी के रूप में है और वहाँ की अधिसंख्य जनता इन्हीं फ़ैक्टरियों में कार्यरत है। 


शी जिनपिंग ने 2019 में अपने देश में उभर रहे नागरिक विद्रोह को भांपते हुए सन 2020 में प्रति व्यक्ति आय को दुगुना करने का सपना दिखाया था जो कोरोना के चलते अब संभव ही नहीं है। 


अपने देश के अंदर बढ़ रहे असंतोष को काबू करने के लिए शी जिनपिंग और उनकी सरकार ने तीन सूत्रीय एजेंडा पर काम करना शुरू कर दिया :


1. नौकरियों को बचाये रखने के लिए सरकारी पैसा पंप करते रहें। 


2. किसी भी तरह की असहमति के विचारों को सेंसर करें और विद्रोह का दमन करें। 


3. नए संघर्ष क्षेत्र (कॉन्फ्लिक्ट एरिया) ढूंढ कर जनता के गुस्से को चाइनीज राष्ट्रवादी भावना के साथ जोड़ दें। 


पॉइंट 1 और 3 ऐसे हैं जो पढ़ के लगेगा कि हर देश यही तो कर रहा है। लेकिन इन पॉइंट्स को आप आइसोलेशन में नहीं पढ़ सकते, चीन के मामले मे पॉइंट 2 integrate करना ही पड़ेगा। 


पॉइंट 2 ही चीन के तानाशाही तंत्र को बाकी लोकताँत्रिक तंत्रो से अलग करता है। यही वजह है कि जहां हमारे देश में लोग प्रधानमंत्री की आलोचना से लेकर सड़क पर प्रदर्शन कर सकते हैं, नेताओं के पुतले जला सकते हैं, यहाँ तक कि संवैधानिक संस्थानों की आलोचना कर सकते हैं, वहीँ चीन में सरकार /देश के खिलाफ जाने वालों के साथ क्या होता है उसकी खबर तक उन्हीं के मीडिया में नहीं बनती। 


चीन की इसी तानाशाही का नतीजा अभी पूरी दुनिया भुगत ही रही है। न तो चीन ने कोरोना के बारे में तथ्य दुनिया को समय से बताये और न ही अपने यहां होने वाली मौतों और अन्य आंकड़ों को सार्वजनिक किया। 


अब आते हैं एक नए शब्द या थ्योरी  पर। और उस शब्द या थ्योरी  के सहारे वर्तमान घटनाक्रम को समझने की कोशिश करते हैं। 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध और राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र में एक शब्द या थ्योरी प्रचलित होनी शुरू हुई, जिसे अकादमिक दुनिया में  "Audience cost" नाम से जाना जाता हैं। 


सन 1994 में राजनीतिविद जेम्स फेरोंन ने इस शब्द को पॉप्युलराइज किया था। उनके अनुसार :  


“An audience cost is a term in international relations theory that describes the penalty a leader incurs from his or her constituency if they escalate a foreign policy crisis and are then seen as backing down.”


आसान शब्दों में समझा जाए तो हर नेता का अपने देश की जनता के बीच और दूसरे देश के नेताओं के बीच एक छवि होती है जो उसके द्वारा लिए गए फ़ैसलों, उसकी उपलब्धियों पर आधारित होती है। मतलब हर नेता की एक ऑडिएंस होती है और उसके हर फैसले की एक कीमत होती है जो उसे चुकानी पड़ती है। इस कीमत को ही ऑडियंस कॉस्ट कहा जाता है। 


जब ये ऑडियंस कॉस्ट विदेश नीति के फ़ैसलों पर आधारित हो जाती है तब टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि अब सिर्फ यहां एक नेता की ही ऑडियंस कॉस्ट नहीं बल्कि दूसरे नेता की भी ऑडिएंस कॉस्ट शामिल हो जाती है। 


ऑडियंस कॉस्ट यानि हमारी और आपकी प्रतिक्रिया, हमारा भावनात्मक दवाब और हमारा समर्थन। 


ऑडिएंस कॉस्ट का प्रबंधन करना भारत जैसे लोकताँत्रिक देश में जहां कोई भी कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र है, बहुत मुश्किल काम है। लेकिन यही काम चीन जैसे मॉडल में काफी आसानी से किया जा सकता है जहां न अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है न कोई मानवाधिकार। 


याद कीजिए सन 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ पुलवामा हमला। हमारे जवानों का वीर गति को प्राप्त होना। कैसा माहौल था देश में। मीडिया क्या माहौल बना रहा था। बुद्धिजीवी कैसा माहौल बना रहे थे। सरकार का 5 साल का कार्यकाल एक तरफ और पुलवामा पर मोदी का रिएक्शन एक तरफ कर दिया गया था। अगर भारत एयर स्ट्राइक करके बालाकोट में हमला नहीं करता तो उसकी कितनी बड़ी पोलिटिकल कॉस्ट/ऑडिएंस कॉस्ट सरकार को चुकानी पड़ सकती थी। अगर उस समय बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसा फैसला नहीं लिया गया होता तो सरकार की छवि उसी के समर्थकों के बीच खराब हो जाती और भाजपा के लिए सरकार बनाना मुश्किल काम होता। उस समय की प्रतिक्रियाएँ पढ़िए सोशल मीडिया पर। लगभग हर सोशल मीडिया यूजर सरकार पर इसी तरह का दबाव डाल रहा था। बहरहाल एयर स्ट्राइक हुआ और भाजपा की सरकार ऑडियंस कॉस्ट को बढ़ने से रोक पाई। 


अब आप सोच रहे होंगे, तो क्या चीन की ऑडियंस कॉस्ट सीमा पर कार्यवाही से बढ़ाई जा रही है। ये सवाल स्वाभाविक भी है, लेकिन चीन शातिर खिलाड़ी है। वो शतरंज का घोडा है जिसका एक और दो चाल तो दिखता है लेकिन ढाई वाली चाल में बाएं जाएगा या दायें जाएगा उसका अंदाजा नहीं होता। 


चीन पर चौतरफा दवाब तो है। ऑस्ट्रेलिया/अमेरिका/जापान/भारत/फ़्रांस/ब्रिटेन समेत तमाम देश कोरोना के चलते हुए नुकसान पर उसको घेर रहे हैं और तमाम तरह के प्रतिबंधों और इंडस्ट्री शिफ्ट करने की बात चल ही रही है। ऐसे में शी जिनपिंग के सामने अपनी राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने की चुनौती भी है। ऐसे में जहां बाकी देश आर्थिक मोर्चे पर उसकी ऑडियंस कॉस्ट बढ़ा रहे हैं वहीँ चीन सीमा पर तनाव बढ़ा कर अपना गोल पोस्ट शिफ्ट कर रहा है ताकि देश को युद्ध के बहाने डरा कर एकजुट किया जा सके और किसी तरह के संभावित विद्रोह का दमन किया जा सके। चीन अपनी ऑडिएंस कॉस्ट खुद ही बना रहा है अपनी जनता को ही डरा कर और उसका साथ उसका मीडिया, उसके नेता, उसके सहयोगी दे ही रहे हैं। 


भारत के खिलाफ जंगी माहौल बनाए रखने से चीन के अपने निजी स्वार्थ सिद्ध होंगे। वो बिना युद्ध लड़े अपनी जनता के बीच "डर का माहौल है" वाला सेंटीमेंट निर्मित कर ही देगा और उसके बुद्धिजीवी/चैनल/इन्फ्लुएंसर और उसके द्वारा प्रभावित किए गए बाकी देशों के मीडिया हाउस/पत्रकार/सेलेब्रिटी भी चीन के पक्ष में ही बात करते दिखाई देंगे। वो न सिर्फ चाइनीज वायरस की थ्योरी का विरोध कर चीन को बचाने की कोशिश करेंगे बल्कि भारत के नेतृत्व  पर दबाव बनाने के लिए भारत मे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग या दुरुपयोग करेंगे। 


चीन का विकल्प पूरी दुनिया के सामने भारत ही है और ये बात चीन भी अच्छी तरह से समझता है। 


प्रधानमंत्री मोदी का साफ़ साफ़ शब्दों में कहना कि "हमारे सैनिक मारते मारते वीर गति को प्राप्त हुए हैं" एक दम साफ़ इशारा है कि भारत इन चुनौतियों के लिए तैयार है। 


ऐसे में अब जो घटनाक्रम आगे घटे उसको ऑडियंस कॉस्ट के चश्मे से भी देखना होगा। भारतीय नेतृत्व को इसका ध्यान रखना होगा कि कौन से कारक हैं जो चीन के नेतृत्व की ऑडिएंस कॉस्ट बढ़ा रहे हैं और कौन से  कारक हैं जो भारत के नेतृत्व की ऑडिएंस कॉस्ट बढ़ा रहे हैं।


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