कश्मीर घाटी के बहू संस्कृति और सभ्यता के मुरीद हुए पर्यटक

✍️ Lieutenant. Preeti Mohan

जम्मू-कश्मीर आने वाले पर्यटक अब तक कश्मीर घाटी को सिर्फ़ कश्मीरी कल्चर से ही जोड़ कर देखते थे, पर अब उन्हें पता चल रहा है कि यहाँ तो कई और संस्कृति और सभ्यता के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं। जिनका खान-पान, वेश भूषा, रीति-रिवाज, लोक संगीत, बोली इत्यादि बहुत ही मनमोहक और आकर्षक है। यह सभ्यताएँ कश्मीरी लोगों से बहुत अलग है। दुनिया भर से आने वाले पर्यटक अब इनकी तरफ़ आकर्षित हो रहें है और इनके खान-पान, वेष-भूषा इत्यादि को बहुत पसंद कर रहें है।

इन सब अन्य भाषा के लोगों की एक विशेषता ओर भी रही है कि ये पूरी तरह से हिंदुस्तान के साथ रहें हैं। पर कश्मीरियों ने इन्हें कभी भी आर्थिक, सामाजिक और राजनीति रूप से उभरने नहीं दिया। सीमा POJK में भी इन भाषों और संस्कृति के लोग रहते हैं। चलो जानते है, भारत के माथे के ताज पर रहने वाले इन आकर्षक लोगों के जीवन और संस्कृति के बारे में:-

शीना समुदाय: - शीना समुदाय घाटी में बसे सबसे प्राचीन समुदायों में एक है। शीना समुदाय के लोग अपनी भाषा, संस्कृति और रहन-सहन के कारण आम कश्मीरियों से सदा अलग दिखे हैं। इसे दार्दी समुदाय भी कहा जाता है। इस समुदाय के लोग मुख्य तौर पर कश्मीर के गुरेज से लद्दाख के द्रास व कारगिल और नियंत्रण रेखा के पार गिलगित बाल्टिस्तान में रहते है। कई इतिहासकार इन्हें आर्यों का वंशज मानते हैं। इस समुदाय की भाषा को शीना कहते है। जम्मू कश्मीर व लद्दाख में इस समुदाय की आबादी लगभग एक लाख बताई जाती है। पारंपरिक तौर पर यह लोग कमरबंदयुक्त लंबा चोगा पहनते हैं। इनका पाजामा खुला और पिंडलियों तक ही लंबा होता है। यह सिर पर ऊनी टोपी (चौऊसुरे) पहनते हैं। इस समुदाय के लोग अपने मकान भी विशिष्ट रूप से पूरी तरह लकड़ी के लट्ठों से बनाते है। शीना/दार्दी समुदाय की लोक कला, संस्कृति सभ्यता अपने आप में विशिष्ट है। शीना भाषा एक सुरभेदी भाषा है जिसमे दो सुर हैं — उठता हुआ और समतल (यानि बिना किसी बदलाव वाला)। शीना संस्कृति में सप्ताह के दिनों के नाम संस्कृत से मिलते-जुलते हैं। जैसे रविवार को ये लोग संस्कृत नाम 'आदित्यवार' कहते है। जिसमें 'रवि' और 'आदित्य' दोनों 'सूरज' के लिए पर्यायवाची शब्द हैं। 

नीचे फोटोस देख कर आप इस समुदाय के संदुरता और शालीनता का अंदाज़ा लगा सकते हो।

हुंजा समुदाय: - आज के दौर में लोगों की औसत उम्र 60-70 वर्ष ही मानी जाती है। लेकिन, बहुत कम लोगो को पता है कि 21वी सदी में भी भारत की हुंजा घाटी में रहने वाले हुंजा समुदाय के लोगों की औसतन उम्र 120 से 150 साल होती है। कुपवाड़ा के क्षेत्र में इस समुदाय के लोग काफी संख्या में रहते है। हुंजा समुदय के लोगों को बुरुशो समुदाय भी कहा जाता है। और इस समुदय की भाषा बुरुशास्की है। इनकी जनसंख्या करीब 87 हजार है।
 
इन्हें दुनिया के सबसे लम्बी उम्र वाले, खुश रहने वाले और स्वस्थ लोगों में गिना जाता है। यहाँ की महिलाओं को दुनिया की सबसे सुंदर महिलाएं होने का ख़िताब भी हासिल है।  हुंजा लोगों के स्वास्थ्य का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि आज तक इस समुदाय का एक भी इंसान कैंसर का शिकार नहीं हुआ है। इन लोगों को दुनिया की कैंसर फ्री पापुलेशन में गिना जाता है। हुंजा समुदाय की महिलाएं 65 की उम्र में भी बच्चे पैदा कर सकती हैं। इस समुदाय के लोग घाटी में रहने वाले अन्य समुदायों की तुलना में कहीं ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं।  

हुंजा समुदय के स्वस्थ शरीर के राज है यहाँ का खानपान। ये लोग सुखाए हुए अखरोट व मेवे (खुबानी) का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा ये लोग कच्ची सब्जियां, फल, अनाज, मेवे के अलावा दूध जैसी चीजों को ही अपने खानपान में शामिल करते है। हर रोज़ सैर करना भी इस समुदाय के कल्चर का ही हिस्सा है।  

बात सन 1984 की है, जब लंदन के हिथ्रो एयरपोर्ट पर हुंजा समुदय का एक व्यक्ति पहुंचा जिसके पासपोर्ट पर उसका बर्थ ईयर सन 1832 लिखा हुआ था। वहाँ मजूद किसी को भी विश्वास नहीं हुआ की इस इंसान की उम्र 152 साल है। जिसका ज़िक्र 1984 में हांगकांग में छपे एक रोचक लेख में भी किया गया था।





पश्तून समुदाय:- अपनी महिमान नवाजी के लिए जाना जाता पश्तून समुदाय भारत के करनाह क्षेत्र गांदरबल में रहता है। यहाँ के लोगों की मात भाषा पश्तो है। पश्तूनवाली मर्यादा के अनुसार इस समुदाय के लोगों के नौ नियम होते: - अतिथि-सत्कार, शरण देना, बदला, वीरता, वफ़ादारी, ईमानदारी, परमात्मा पर भरोसा रखना, अपनी इज़्ज़त पर दाग़ नहीं लगने देना और स्त्रियों की इज़्ज़त। पश्तो भाषा भारत के की अन्य भाषाएँ से काफी मिलती जुलती है। यहाँ के लोगों के नृत्य को अट्टन कहा जाता है। जो गुजरात के गरबा से थोड़ा बहुत मिलता जुलता है। रबाब, ढोल, तबला, ज़ुर्ना आदि यहाँ के प्रमुख वाद्यं है। भारत के अन्य समुदाय के तरह यहाँ भी शादी के समय दूल्हा हाथ में तलवार और सिर पर पगड़ी साजता है और दुल्हन लाल रंग के कपड़े ही पहिनती है।





गुज्जर समुदाय:- गुज्जर समुदाय के लोग गुजरात से लेकर कश्मीर तक फैले हुए है। लेकिन इनके 12 अलग-अलग कबीले है। बारामुला के क्षेत्र में इस समुदाय के लोग काफी संख्या में रहते है। कश्मीर में यह समुदाय बक्करवाल गुज्जर/दोदू गुज्जर /जमींदार गुज्जर के नाम से भी जाना जाता है। यह समुदाय कश्मीर का तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। 2011 की जनसख्या के अनुसार इस समुदाय की जम्मू-कश्मीर में 15 लाख के करीब आबादी है। यह समुदाय क्षत्रिय समाज का हिस्सा है। गुर्ज से लड़ने में माहिर होने के कारण इन्हे गुज्जर कहा जाने लगा। गुज्जर समुदाय की भाषा गोजरी है। इस भाषा में लोक गीत, लोक कथाएं और लोक कहानीयां का खजाना भरा पड़ा है। ढोल, तुम्बी और तबला आदि इस समुदाय के प्रमुख वाद्यं है। इस समुदाय के उत्स्व देखने योग्य होते है।





हिण्डको कल्चर: हिण्डको सभ्यता पांच हजार साल से अधिक पुरानी है। इस समुदाय की भाषा को हिण्डको यां पहाड़ी भाषा कहते है। हिण्डको सभ्यता कश्मीर से लेकर अफगानिस्तान तक फैली हुई है। जम्मू और कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले के केरन क्षेत्र में हिण्डको भाषा बोली जाती है। ये स्थान बॉर्डर टूरिज्म का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। हिण्डको भाषा को पंजाबी भाषा की उप भाषा भी कहते है। इस समुदाय की सभ्यता भी पंजाबी लोगों से काफी मिलती जुलती है। पंजाबी भाषा का प्रसिद्ध गीत 'हज़ारे वाला मुंडा', में भी जिस हज़ारा की बात करी गई है उस हज़ारा क्षेत्र में भी हिण्डको कल्चर फॉलो किया जाता है।




इन सब सभ्यताओं के इलावा कश्मीर घाटी के अंदर और भी कई सभ्यताएं निवास करती है जिनका जीवन बहुत ही आकर्षक और मनमोहक है।

चलिए अब बात करते है कश्मीर के उन प्रसिद्ध स्थानों और क्षेत्रों के बारे में जो अभी तक राजनीतिक और सामाजिक कारणों के कारण पर्दे के पीछे ही थे: -

करनाह: करनाह का असल नाम करनाव (Karnaav) था। ये नाम यहाँ के राजा करन (Karan) से सम्बधित है। जो एक समय में यहाँ के राजा हुआ करते थे। यहाँ के किरण (Keran) कस्बे का नाम भी राजा करन के नाम से सम्बधित है। एक समय यहाँ पर सिख राजाओं का राज भी रहा है। बोम्बा (Bomba) कबीला के शेर अहमद खान ने सिखों और डोगरा दोनों से जंग की थी। और उसे आखिर में डोगरा महाराज रणबीर सिंह से हार मिली। जिसके बाद में महाराजा रणबीर सिंह ने इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया। प्रसिद्ध लेखक Kalhana की पुस्तक Rajatarangini के अनुसार युद्ध और रियासत हारने के बाद अक्सर राजे-महाराजे करनाह में ही शरण लेते थे।

साधना पास या नस्ती सुन: करनाह को कश्मीर के साथ 'साधना पास' जोड़ता है। इस पास का नाम बॉलीवुड एक्ट्रेस साधना से सम्बधित है जो की 1971 की इंडो-पाक युद्ध में भारतीय आर्मी का हौसला बढ़ाने के लिए कुपवाड़ा आई थी। इस पास को 'नस्ती सुन' (Nastachun) पास कहते हैं यानी नाक को बहाने वाला पास क्योंकि यहाँ की हवा तेज और सर्द है, जिसके कारण नाक बहने लगता है।

टीटवाल:- टीटवाल (Teetwal) यहाँ का एक और कस्बा है। ये कस्बा जम्मू और कश्मीर राज्य के कुपवाड़ा ज़िले में स्थित है। यह किशनगंगा नदी के किनारे और नियंत्रण रेखा के पास बसा हुआ है। 1947 से पहले ये यहाँ की वापार (Business) का सेंटर था। ये कश्मीर डिविजिन वो इलाका है जहां बर्फ नहीं पड़ती। टेटवाल पुराने समय में तीरथबल (Teerathbal) कहते थे।

शारदापीठ:- करनाह के क्षेत्र में ही हिन्दू संस्कृति का प्रसिद्ध और शक्तिशाली शारदापीठ देवी सरस्वती का प्राचीन मन्दिर है जो शारदा के निकट कृष्णगंगा नदी के किनारे स्थित है। इसे पुराने ज़माने में 'शारदादेश' भी कहा जाता था। शारदा पीठ टीटवाल से मुश्किल से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक शक्तिशाली शक्तिपीठ है। यहाँ आने वाले भगतों की मुरादें जरूर पूरी होती है। जिक्रयोग है कि इसी साल भारत सरकार की तरफ़ से कुपवाड़ा के तीथवाल कस्बे में शारदा शक्तिपीठ के प्रतिरूप में एक मंदिर भी बनाया गया है। इस मंदिर को देखने के लिए पर्यटक काफी संख्या में आने लगे है।

कृष्णगंगा नदी:- जम्मू और कश्मीर में बहने वाली कृष्णगंगा नदी एक पवित्र नदी। यहाँ के निवासिओं में इस नदी को लेकर काफी मान्यता है। लोग इस नदी के पवित्र जल को बोतलों और वर्तनों में भरकर घर में रखते है। वह इस जल को घर में होने वाले शुभ कार्यों में यूज़ करते है। इस पवित्र नदी का जल मेडिकेटिड होता है, इसलिए इसके जल सेवन से काफ़ी लोग रोग मुक्त भी होते है।  

यह पवित्र नदी जम्मू और कश्मीर प्रदेश के सोनमर्ग शहर के पास स्थित कृशनसर झील (कृष्णसर झील) से उत्तपन होती है और उत्तर को चलती है जहाँ बदोआब गाँव के पास द्रास से आने वाली एक उपनदी इसमें मिल जाती है। फिर यह कुछ दूर तक नियंत्रण रेखा के साथ-साथ चलकर गुरेज़ में यह गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र में दाख़िल हो जाती है। कृष्णगंगा नदी का कुल 245 कि.मी. का मार्ग है।  

तुतमारी गली और तंगधार:- तंगधार (Tangdhar) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के कुपवाड़ा ज़िले में स्थित एक नगर है। तुतमारी गली कश्मीर के सोपोर और करनाह को जोड़ती थी। लेकिन अब इस पास को सिर्फ़ चरवाहे ही इस्तेमाल करते हैं। तंगधार (Tangdhar) यहाँ का एक कस्बा है। इस इलाके का नाम तंगधार इसलिए पढा है क्योंकि यहाँ आने का रास्ता तंग था। 

शंकराचार्य मार्ग:- जगद्गुरु आदि शंकराचार्य कश्मीर में वैदांतिक ज्ञान प्रसार करते हुए पहुंचे थे। उस समय कश्मीर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत था। लोग शिव और शक्ति में अटूट आस्था रखते थे। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी अखनूर, राजौरी, शोपियां, कुलगाम से गुजरते हुए श्रीनगर आए और फिर यहाँ से  कुपवाड़ा के रास्ते से माँ शारदा शक्तिपीठ गए थे, उस रस्ते को शंकराचार्य मार्ग के नाम से जाना जाता है।

कश्मीर घाटी की इस करनाह रीजन के कल्चर को देखने और समझने के लिए पर्यटक बड़ी संख्या में आ रहे। क्योकि नॉन कश्मीरी पर्यटकों के मन भी कश्मीर की जो इमेज बनी हुई थी उस से इस रीजन की भाषा, वेश-भूषा, कल्चर और रीति-रिवाज आदि काफ़ी भिन्न है। अगर आपको नए स्थानों पर घूमने, नए कल्चर देखने और समझने का शौक़ है तो आपको कश्मीर घाटी की बहू संस्कृति और सभ्यता को एक बार जरूर देखना चाहिए। 

पर्यटकों की इन कल्चर और समुदाय के प्रति बढ़ती को देखते हुए अब सरकार को भी चाहिए कि वह बढ़-चढ़ कर इन ट्रेडीशंस और इन कस्टम्स को प्रमोट करें। जिससे टूरिज्म भी बढ़ेगा और देश इन सब कल्चर के साथ जुड़ सकेगा और यह कल्चर और समुदाय के लोग देश के साथ जुड़ सकेंगे।