वाख़ान कारिडोर - भारत के विश्वगुरु बनने का मुख्य द्वार

वाख़ान कारिडोर - भारत के विश्वगुरु बनने का मुख्य द्वार

✍️ Sunil Dutt (Director, Punjabi Sahitya Academy)

वखान कॉरिडोर उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान की एक पतली भूमि पट्टी है, जिसकी लंबाई 300 से 350 किलोमीटर है और चौड़ाई 10 से 65 किलोमीटर के बीच में बदलती रहती है। यह क्षेत्र उत्तर में ताजिकिस्तान, दक्षिण में गिलगित-बाल्टिस्तान और पूर्व में चीन से जुड़ा है। इस कॉरिडोर का भारत के लिए रणनीतिक, ऐतिहासिक, और भौगोलिक महत्व है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

वखान कॉरिडोर का निर्माण 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश साम्राज्य और रूसी साम्राज्य के बीच हुई "ग्रेट गेम" के दौरान हुआ। इसका उद्देश्य ब्रिटिश भारत और रूसी साम्राज्य के बीच एक बफर ज़ोन बनाना था। 1893 के डूरण्ड लाइन समझौते के तहत इसे अफगानिस्तान का हिस्सा बनाया गया ताकि ब्रिटिश और रूसी क्षेत्रों के बीच कोई सीधा संपर्क न हो।

रणनीतिक महत्व

आज के समय में वखान कॉरिडोर की स्थिति भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र भारत और अफगानिस्तान के बीच भौगोलिक संपर्क का संभावित माध्यम हो सकता है। हालांकि, गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे के कारण भारत का इस क्षेत्र से सीधा जुड़ाव नहीं हो पाता है।

आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व

वखान कॉरिडोर ऐतिहासिक रूप से व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मार्ग रहा है। यह भारत और मध्य एशिया के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने की संभावना रखता है, जो आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से फायदेमंद हो सकता है।

चुनौतियाँ और अवसर

हालांकि, वर्तमान समय में इस क्षेत्र की दुर्गमता और राजनीतिक अस्थिरता के कारण इसकी उपयोगिता सीमित हो गई है। लेकिन अगर भविष्य में स्थिरता आती है, तो यह भारत और मध्य एशिया के बीच एक नया व्यापारिक मार्ग बन सकता है।

वखान कॉरिडोर न केवल एक भौगोलिक पट्टी है, बल्कि यह क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी भी है। इसका सही उपयोग भारत की कूटनीतिक और रणनीतिक स्थिति को और मजबूत कर सकता है।

पाकिस्तान की हर संभव कोशिश है कि वह किसी भी तरह से इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर ले और यह काम वह जल्दी करना चाहता है, इससे पहले कि रूस, चीन और भारत की नज़दीकियां आपस में बढ़ें।

इस पूरे क्षेत्र के समझौते में अब रूस की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती जा रही है।

पाकिस्तान यह कोशिश करेगा कि वह अफ़ग़ानिस्तान को भरोसे में लेकर उसके साथ एक दिखावे का युद्ध छेड़े और वाखान पर कब्ज़े के लिए अंदरखाते अफ़ग़ानिस्तान के गुटों को पहले ही खरीद चुका हो। भारत को न केवल इस पर अपनी नज़र रखनी है, बल्कि किसी भी सूरत में अफ़ग़ानिस्तान के गुटों को पाकिस्तानी ISI के नज़दीक जाने से रोकना है।

फिलहाल तो पाकिस्तानी फौज में पश्तो और पंजाबियों की आपसी लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है और पाकिस्तान की अवाम का भरोसा भी पाकिस्तान की ISI और फौज पर से तेज़ी से खत्म हो रहा है। इसलिए भी पाकिस्तान की ISI को कुछ कारनामे की आवश्यकता महसूस हो रही है।