करतार सिंह सराभा: 19 वर्ष की उम्र में शहीद हुए भारत के महान क्रांतिकारी, भगत सिंह अपनी जेब में रखते थे उनकी फोटो

करतार सिंह सराभा: 19 वर्ष की उम्र में शहीद हुए भारत के महान क्रांतिकारी

✍️Lieutenant. Preeti Mohan

भारत की आज़ादी के संघर्ष में कई ऐसे युवा क्रांतिकारी हुए जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश के लिए लड़ाई लड़ी। करताल सिंह सराभा ऐसे ही एक बहादुर सपूत थे जिन्होंने मात्र 19 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूमकर भारत को आज़ाद कराने की अपनी लगन दिखाई।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
करतार सिंह सराभा का जन्म 24 मई 1896 को पंजाब के लुधियाना जिले के सराभा गांव में हुआ। माता-पिता के निधन के बाद उनके दादा ने उनकी परवरिश की। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान देशभक्ति की भावना उनमें गहराई से जागी।

अमेरिका और ग़दर पार्टी की स्थापना
1912 में अमेरिका पहुंचे सराभा ने वहां भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव को देखा। अमेरिका में होटलों, पार्कों और सिनेमाघरों के बाहर बोर्ड लगे होते थे: "भारतीयों और कुत्तों का प्रवेश वर्जित है।" यह अपमान सराभा से सहा नहीं गया। 1 नवंबर 1913 को ‘हिंदुस्तानी एसोसिएशन ऑफ अमेरिका’ की स्थापना की गई, जो बाद में ग़दर पार्टी बनी। सराभा ने इस पार्टी के अख़बार ‘ग़दर’ को निकालने में सक्रिय भूमिका निभाई। सराभा अक्सर अखबार छापते समय यह शेर गुनगुनाते थे:

"सेवा देश दी जिंदड़िए बड़ी औखी, गल्लां करनियां ढेर सुखल्लियां ने।
जिन्हां देश सेवा विच पैर पाया, उन्हां लाखां मुसीबतां झल्लियां ने।"

भारत वापसी और बगावत की योजना
सितंबर 1914 में ‘कामागाटामारू’ जहाज पर हुए अत्याचार से आहत सराभा और उनके साथियों ने दिसंबर 1914 में भारत लौटकर फरवरी 1915 में सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई। वे पंजाब सहित कई शहरों में जाकर बगावत के लिए लोगों को जोड़ने लगे।

गिरफ्तारी और लाहौर साजिश केस
19 फरवरी 1915 को विद्रोह का मौका भंग हो गया और सराभा समेत कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया। लाहौर साजिश केस में उन्होंने साहसिक बयान देकर अपने संघर्ष का समर्थन किया।

अदालत में दिखाई बहादुरी

मार्च 1915 में करतार सिंह सराभा और उनके साथियों पर 'लाहौर षड्यंत्र केस' चलाया गया। डेढ़ साल तक चले मुकदमे के दौरान सराभा ने निडर होकर कहा: "हमने कोई षड्यंत्र नहीं रचा। हमने तो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खुली बगावत की है और इसमें गर्व महसूस करते हैं।" उन्होंने कोमागाटामारू कांड और भारतीयों के अपमान का जिक्र करते हुए कहा कि गुलामी की जंजीरें तोड़ना उनका धर्म था। जज के मौत की चेतावनी देने पर उन्होंने कहा: "हां, मैं परिणाम जानता हूं, लेकिन बयान वापस नहीं लूंगा।"

शहादत और विरासत
16 नवंबर 1915 को करताल सिंह सराभा और छह साथियों को लाहौर जेल में फांसी दी गई। उनकी शहादत ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा दी और लाखों दिलों में आज़ादी की अलख जगाई।

करताल सिंह सराभा की कहानी हमें देशभक्ति, साहस और समर्पण की मिसाल देती है, जो आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत है। करताल सिंह सराभा ने भगत सिंह जैसे युवाओं को प्रेरित किया। गदर पार्टी ने पहली बार सशस्त्र क्रांति का बीज बोया था। करतार सिंह सराभा की शहादत ने साबित किया कि "अमरता उम्र नहीं, विचारों से मिलती है।" आज भी उनका जीवन देशप्रेम की मशाल जलाए हुए है।

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