25 मई 1675 का दिन भारतीय इतिहास में धर्म और मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए उठाए गए एक महान कदम के रूप में दर्ज है। इस दिन कश्मीर से आए कश्मीरी पंडितों के एक प्रतिनिधिमंडल ने, पंडित कृपा राम दत्त के नेतृत्व में, श्री आनंदपुर साहिब पहुंचकर नौवें सिख गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर जी से मुग़ल अत्याचारों से बचाव के लिए सहायता मांगी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
17वीं शताब्दी में मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल में जबरन धर्मांतरण की नीति जोरों पर थी। विशेष रूप से कश्मीर में हिन्दू समाज पर गहरा संकट छा गया था। पंडितों को इस्लाम कबूल करने या मृत्यु का विकल्प दिया जा रहा था। ऐसे कठिन समय में, कश्मीरी पंडितों ने किसी ऐसे मार्गदर्शक की तलाश की जो उनके अधिकारों और आस्था की रक्षा कर सके। उनकी यह तलाश उन्हें श्री गुरु तेग बहादुर जी तक ले आई।
गुरु तेग बहादुर जी का ऐतिहासिक निर्णय:
गुरु जी ने पंडितों की बात को गंभीरता से सुना और तुरंत यह निर्णय लिया कि यदि एक महान आत्मा अत्याचार के विरुद्ध खड़ी हो जाए, तो हजारों की आस्था और अस्तित्व बच सकते हैं। गुरु साहिब ने मुग़ल दरबार में जाकर अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होने का निश्चय किया, भले ही इसके लिए उन्हें अपना बलिदान क्यों न देना पड़े।
यह निर्णय केवल धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा नहीं था, बल्कि एक गहरी मानवतावादी चेतना का परिचायक भी था। गुरु जी के इस बलिदान ने आने वाली पीढ़ियों को अत्याचार के सामने डटकर खड़े होने की प्रेरणा दी।
- आज का इतिहास 25 मई
- श्री गुरु तेग बहादुर और कश्मीरी पंडित
- 1675 धर्म रक्षा की कहानी
- गुरु तेग बहादुर का बलिदान
- आनंदपुर साहिब इतिहास
- मुग़ल काल में धार्मिक उत्पीड़न
- सिख इतिहास के महान क्षण
निष्कर्ष:
25 मई 1675 केवल एक तिथि नहीं, बल्कि बलिदान, साहस और धार्मिक स्वतंत्रता का प्रतीक है। श्री गुरु तेग बहादुर जी का यह ऐतिहासिक निर्णय केवल सिख धर्म ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज और उसकी विविध आस्थाओं की रक्षा के लिए उठाया गया एक अद्वितीय कदम था।