ਖਾਲਸਾ ਮੇਰੋ ਰੂਪ ਹੈ ਖਾਸ॥
ਖਾਲਸਾ ਮਹਿ ਹੌ ਕਰੌ ਨਿਵਾਸ॥
ਖਾਲਸਾ ਮੇਰੋ ਮੁਖ ਹੈ ਅੰਗਾ॥
ਖਾਲਸੇ ਕੇ ਹੌਂ ਸਦ ਸਦ ਸੰਗਾ॥
✍️Lieutenant. Preeti Mohan
जहां आमतौर पर सेना से सेवानिवृत्ति के बाद सैनिक घर पर विश्राम करते हैं या अन्य व्यवसायों में लग जाते हैं, वहीं मोगा जिले के गांव घोलिया खुर्द के पूर्व सैनिक सरदार गुरनैब सिंह घोलिया ने अपनी ज़िंदगी को एक अनूठे सेवा पथ पर समर्पित कर दिया है।
सैनिक से सेवक तक का सफर
सरदार गुरनैब सिंह ने भारतीय सेना से 2004 में सेवानिवृत्ति प्राप्त की। सेना की वर्दी और अनुशासन उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके थे। 2008 में जब गुरुता गद्दी दिवस के 300 वर्षों का ऐतिहासिक उत्सव मनाया जा रहा था, तब वह मिलिटरी बैंड के साथ समागम में शामिल हुए थे। उस दिन जत्थेदार बाबा कुलवंत सिंह जी ने उन्हें तख्त श्री हजूर साहिब, नांदेड़, महाराष्ट्र में सेवा के लिए प्रेरित किया। तभी से उन्होंने अपनी पुरानी वर्दी को फिर से पहना और एक नई "ड्यूटी" को अपनाया – गुरु साहिब के चरणों में समर्पित सेवा।
रोजाना की हाजिरी
सरदार गुरनैब सिंह हर रोज़ अमृत वेले सैन्य वर्दी पहनकर तख्त श्री हजूर साहिब पहुंचते हैं और पूरे भारतीय सेना की ओर से गुरु साहिब के चरणों में हाजिरी लगाते हैं। यह केवल एक धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि उनकी आत्मा से जुड़ी एक गहरी भावना है – सेवा, श्रद्धा और देशभक्ति की अद्भुत मिसाल।
निःस्वार्थ सेवा
आज के भौतिकवादी युग में जहां अधिकांश लोग सेवा के बदले वेतन या लाभ की अपेक्षा रखते हैं, वहीं सरदार गुरनैब सिंह जी बिना किसी वेतन के पूरी श्रद्धा और निष्ठा से सेवा कर रहे हैं। संगत उन्हें जनरल साहिब कहकर सम्मान देती है।
धार्मिक पृष्ठभूमि
उनके पिता जी निहंग सिख थे, जो स्वयं भी श्री हजूर साहिब में सेवा करते थे और अपने पुत्र को भी सेवा करने के लिए प्रेरित किया करते थे। इस पारिवारिक परंपरा और धार्मिक भावना ने सरदार गुरनैब सिंह के जीवन को दिशा दी।
सरदार गुरनैब सिंह घोलिया जी का जीवन उन सभी के लिए प्रेरणा है जो सेवा और भक्ति का सही अर्थ जानना चाहते हैं। वे यह दिखाते हैं कि वर्दी केवल एक शरीर की नहीं होती, बल्कि आत्मा की होती है – जो हर दिन गुरु के चरणों में झुककर अपनी ड्यूटी निभाती है।
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