बरसी विशेष: लाहौर में जन्मे बाबा खड़क सिंह जी: सेवा, समर्पण और संत जीवन की प्रेरणा

प्रारंभिक जीवन और जन्म

बाबा खड़क सिंह जी का जन्म 2 जेठ संवत् 1952 विक्रमी (1895 ई.) को मंगलवार के दिन पंजाब (अब पाकिस्तान) के ज़िला लाहौर के गाँव बर्की में हुआ। उनके पिता का नाम सरदार पाला सिंह और माता का नाम चंद कौर था। जन्म के समय सिर में जाटवा होने के कारण उनका नाम "बावा सिंह" रखा गया। बाद में जब उन्होंने अमृत छका, तो उन्हें "खड़क सिंह" नाम से संबोधित किया जाने लगा।

सैनिक जीवन और आध्यात्मिक मोड़

25 वर्ष की आयु में उन्होंने ब्रिटिश सेना में भर्ती होकर बग़दाद तक की यात्रा की। लेकिन जलियाँवाला बाग़ नरसंहार और गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के प्रभाव ने उन्हें 1922 में सेना की नौकरी छोड़कर धर्म और सेवा के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया।

धार्मिक आंदोलनों में भागीदारी

बाबा जी ने जैतो मोर्चा में भाग लिया, जिसके चलते उन्हें 500 अन्य सिखों के साथ गिरफ्तार किया गया और लगभग 18 महीने नाभा जेल में कैद में रखा गया। जेल से मुक्त होने के बाद वे नानके गाँव मगिंदरपुर (अजनाला) आकर सामाजिक और धार्मिक सेवा में लग गए।

गुरुद्वारा बीड़ बाबा बुद्धा साहिब जी का निर्माण

1938 में बाबा निधान सिंह जी के संपर्क में आने के बाद बाबा खड़क सिंह जी ने संगत के साथ मिलकर अनेक गुरुघरों की सेवा शुरू की। उन्हीं की अगुआई में गुरुद्वारा बीड़ बाबा बुड्ढा साहिब (ठट्ठा) की इमारत, लंगर हाल, दीवान हाल, सरोवर और अन्य सुविधाओं का निर्माण कराया गया।

अन्य सेवाएँ और निर्माण कार्य

बाबा जी के नेतृत्व में निम्नलिखित पवित्र स्थलों की सेवा व निर्माण कार्य किए गए:

  • गुरुद्वारा डेरा साहिब (देहरा साहिब) (पठेविंड)
  • गुरुद्वारा सन् साहिब (बसरके गिलाँ)
  • गुरुद्वारा माई भागो जी (झब्बाल)
  • गुरुद्वारा श्री रामसर साहिब (अमृतसर)
  • श्री गुरु ग्रंथ साहिब भवन

साथ ही, बाबा जी ने सिख विद्यार्थियों के लिए स्कूल, डिग्री कॉलेज और पब्लिक स्कूलों की स्थापना भी की।

बरसी विशेष

उत्तराधिकारी और अंतिम समय

बाबा करतार सिंह भिंडरांवाले की उपस्थिति में उन्होंने बाबा दर्शन सिंह जी को उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 30 मई 1986 को 91 वर्ष की आयु में बाबा खड़क सिंह जी ने देह त्याग दी। उनकी स्मृति में गाँव ठट्ठा में एक स्मारक द्वार और "गुरुद्वारा संत निवास" का निर्माण किया गया, जहाँ हर वर्ष 30 मई को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है।

बाबा खड़क सिंह जी का जीवन तपस्या, सेवा और निष्काम कर्म की मिसाल है। वे न केवल धार्मिक सुधारों के अग्रणी थे, बल्कि सामाजिक जागरूकता, शिक्षा और गुरमत प्रचार के भी प्रतीक थे।