जस्सा सिंह रामगढ़िया: हिंदुस्तान का अदम्य रक्षक

जस्सा सिंह रामगढ़िया

✍️Lieutenant. Preeti Mohan
18वीं सदी में, जब मुग़ल साम्राज्य का पतन हो रहा था और विदेशी आक्रमणकारी हिंदुस्तान की धरती को लूटने आते थे, तब सिख योद्धा जस्सा सिंह रामगढ़िया ने देश की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका जन्म 5 मई, 1723 में को लाहौर के समीप गांव ईछोगिल (ईचोगिल) एक सिख परिवार में हुआ। वह रामगढ़िया मिसल के प्रमुख बने, जिसका नाम उनके द्वारा पुनर्निर्मित रामगढ़ किले (अमृतसर) से लिया गया। यह किला सिखों की सैन्य शक्ति का प्रतीक बना।

देश की सेवा 
1748 की बात है, अदीना बेग की फौज ने सिखों के एक किले राम रौनियाँ (गुरु रामदास जी की स्मृति में) को घेर रखा था। इस घेरे के दौरान सरदार जस्सा सिंह अपने जत्थे के साथ सिखों से जा मिले और दीवान कौड़ामल की मदद से अदीना बेग को वापस लाहौर भिजवा दिया। बाद में यह किला सरदार जस्सा सिंह को ही दे दिया गया, जिन्होंने किले का जीर्णोद्धार करवाया और इसका नाम बदल कर ‘रामगढ़’ रख दिया। यहीं से सरदार जस्सा सिंह ‘सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया’ नाम से विख्यात हो गए।

मिसलों का उदय और रामगढ़िया मिसल
1750 के दशक तक, सिख समुदाय 12 मिसलों (सैन्य-राजनीतिक संघ) में संगठित हो गया। जस्सा सिंह ने रामगढ़िया मिसल की स्थापना की, जिसका नाम उनके द्वारा जीते गए रामगढ़ किले (अमृतसर) से पड़ा। यह मिसल लोहारों, बढ़ईयों और शिल्पकारों के समर्थन से बनी थी, जो किलों के निर्माण और हथियार बनाने में माहिर थे। रामगढ़िया मिसल ने पंजाब के मध्य भागों पर अधिकार कर लोहपथ (लुधियाना) और अमृतसर को अपना केंद्र बनाया।

किलों का निर्माण और अफगानों-मुगलों से संघर्ष
उन्होंने कई किले और बुंगों का निर्माण करवाया, जिससे हिंदुस्तान के तीर्थस्थलों और व्यापार मार्गों की सुरक्षा मजबूत हुई। जस्सा सिंह रामगढ़िया ने मुगल सल्तनत और अफगान आक्रमणों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। 1767 में अहमद शाह अब्दाली की सेनाएँ जब ब्यास नदी पार कर रही थीं, तब जस्सा सिंह ने उनका मार्ग अवरुद्ध किया और संघर्ष में अहम भूमिका निभाई। 

जस्सा सिंह ने केवल युद्ध नहीं लड़े, बल्कि सिख धर्म के प्रतीकों को मजबूत किया:

  • हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की सुरक्षा में उनकी सेना ने अहम भूमिका निभाई।
  • उन्होंने हिंदू मंदिरों को लूटने वाले अफ़गान आक्रमणकारियों (जैसे अहमद शाह दुर्रानी) का मुकाबला कर हिंदुस्तान को सुरक्षा दी।
  • रामगढ़िया बंगा (अमृतसर) जैसे किलों का निर्माण करवाया, जो हिंदुस्तान की वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
लाल किले पर निशान साहिब
1761 की तीसरी पानीपत युद्ध के बाद जब मराठा शक्ति कमजोर पड़ गई, तब 1783 में बाघेल सिंह, जस्सा सिंह अहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया के नेतृत्व में सिखों की संयुक्त सेना ने दिल्ली पर आक्रमण कर मुगलों को परास्त किया और लाल किले पर निशान साहिब फहराया। हालांकि 1760-70 के दशक में उत्तर भारत में मराठा विस्तार के कारण सिख मिसलों और मराठों के बीच सत्ता संघर्ष हुआ, फिर भी दोनों ने मुगलों और अफ़गानों के विरुद्ध मिलकर "हिंदू धर्म और हिंदुस्तान की रक्षा" का साझा उद्देश्य निभाया।

धर्म और सम्मान की रक्षा
तोशाम (हरियाणा) में एक ब्राह्मण ने शिकायत की कि एक मुसलमान अधिकारी ने उसकी बहू का अपहरण कर लिया था; जस्सा सिंह ने तुरंत कार्रवाई करके उस अधिकारी को मार गिराया और लड़की को पति को लौटा दिया। उनकी वीरता और न्यायप्रियता ने उन्हें इतिहास में 'देश का रक्षक' की उपाधि दिलाई।

ऐतिहासिक महत्व
1803 में उनकी मृत्यु तक, जस्सा सिंह ने सिख शक्ति को एक सुनियोजित राजनीतिक व्यवस्था में ढाला। उनका जीवन "हिंदुस्तान दी रख्या" के सिद्धांत को चरितार्थ करता है, जहाँ उन्होंने जाति या क्षेत्र से ऊपर उठकर समस्त भारतीयों की रक्षा की। आज भी पंजाब में उनके नाम पर स्थित रामगढ़िया बाज़ार और गुरुद्वारे उनकी विरासत को जीवंत रखे हुए हैं।