लेखक: सुनील दत्त, पूर्व डायरेक्टर पंजाबी साहित्य अकादमी
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सर गंगाराम का जन्म 13 अप्रैल 1851 को मंगतांवाला (पंजाब, अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने रुड़की के थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज (अब IIT रुड़की) से पढ़ाई की और सिविल इंजीनियरिंग में महारत हासिल की।
लाहौर के निर्माता
सर गंगाराम को लाहौर के आधुनिकीकरण का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने शहर की शहरी संरचना, जल प्रबंधन और सार्वजनिक भवनों की रूपरेखा तैयार की।
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गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी, लाहौर हाईकोर्ट, लाहौर म्यूजियम |
🏛️ उनके प्रसिद्ध निर्माण कार्य:
- लाहौर म्यूजियम
- गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी (GCU)
- मायो स्कूल ऑफ आर्ट्स (अब नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स - NCA)
- जनरल पोस्ट ऑफिस (GPO), लाहौर
- लाहौर हाईकोर्ट
- एग्जीबिशन हॉल
- अंजुमन-ए-हिमायत-ए-इस्लाम की इमारतें
उनकी इंजीनियरिंग शैली में स्थायित्व, कार्यक्षमता और सौंदर्यशास्त्र तीनों का अनूठा संतुलन देखने को मिलता है।
कृषि में क्रांति
रेनाला खुर्द में सर गंगाराम ने हजारों एकड़ जमीन पर आधुनिक खेती शुरू की। उन्होंने नहरें, ट्यूबवेल और सिंचाई की तकनीकें लागू कर पंजाब की बंजर ज़मीन को उपजाऊ बना दिया।
समाजसेवा: सेवा ही धर्म
गंगाराम अस्पताल (लाहौर) उनकी सबसे बड़ी देन थी। उन्होंने विधवाओं, महिलाओं और अनाथ बच्चों के लिए स्कूल और प्रशिक्षण संस्थान शुरू किए।
सम्मान और उपाधियाँ
ब्रिटिश सरकार ने उन्हें राय बहादुर और फिर ‘सर’ की उपाधि दी। लाहौर के मॉल रोड पर उनकी प्रतिमा आज भी उनकी उपस्थिति की गवाही देती है।
उनकी प्रमुख समाजसेवी संस्थाएँ
- गंगाराम अस्पताल, लाहौर – मुफ्त इलाज के लिए
- गंगाराम ट्रस्ट – शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और विधवा पुनर्वास के लिए
- तकनीकी प्रशिक्षण केंद्र – युवाओं को स्वरोजगार के लिए तैयार करने हेतु
विभाजन के बाद की विरासत
1947 में देश के विभाजन के बाद, सर गंगाराम का परिवार भारत आ गया। उन्होंने दिल्ली में भी अपनी सेवा भावना को जारी रखा:
- 1954 में दिल्ली में “सर गंगाराम अस्पताल” की स्थापना की गई, जो आज भी भारत के शीर्ष अस्पतालों में शामिल है।
- पाकिस्तान में लाहौर का गंगाराम अस्पताल अब भी कार्यरत है और उनकी विरासत को ज़िंदा रखे हुए है।
सर गंगाराम भारत और पाकिस्तान दोनों की साझा विरासत हैं। उन्होंने धर्म, जाति और सीमाओं से ऊपर उठकर इंसानियत की सेवा की। उन्हें सही मायनों में "लाहौर का पिता" कहा जाना बिल्कुल उचित है।